Monday, 18 April 2016

बालिश्‍त भर कहानी - दोस्‍त

वो दोस्‍त थे । वो सिर्फ घर ढूँढने में उसकी मदद कर रहा था । उस घर में उसकी दोस्‍त को अकेले ही रहना था । पर एक साथ कितने ही घरों में जाना और ड्राइंग रूम के छोटा होने या बैडरूम के साथ बाथ अटैच नहीं होने जैसी बातें डिस्‍कस करने में उसे एक अनकहा मज़ा आ रहा था ।

कभी मकान मालिकों और कभी प्रापर्टी डीलर्स का उन्‍हें गलती से पति पत्नि  समझ लेना उसे अब अच्‍छा लगने लगा था । कई बार उसने और कई बार उसकी दोस्‍त ने एक्‍सप्‍लेन किया कि हम कॉलेज के ज़माने से दोस्‍त हैं । फिर दोनों ने एक्‍सप्‍लेन करना बंद कर दिया।

एक बार जब प्रापर्टी डीलर ने कहा कि यहाँ से बच्‍चों के लिए स्‍कूल बहुत पास है तो उसने शरारत भरी नज़र से अपनी दोस्‍त को देखते हुए प्रापर्टी डीलर से कहा कि हाँ भाई साहब बच्‍चों का स्‍कूल दूर होने से बहुत परेशानी होती है तो उसकी दोस्‍त ने अपनी बड़ी आंखें और बड़ी करके उसे धमकाया । पर फिर हंस दी।

कोई घर पसंद आता तो औकात के बाहर और कोई औकात के अंदर होता तो उसकी दोस्‍त के सपने से मेल नहीं खाता था । वो कहाँ लटकाएगी अपनी फेवरेट पेन्टिंग । कहाँ रखेगी अपनी कॉफी टेबल । अपनी किताबें । पचास के ऊपर घर देखने के बाद उसे भी अपनी दोस्‍त के सपनों का घर साफ साफ दिखने लगा था।

फिर एक दिन एक घर देखा । उसकी दोस्‍त के सपने से मेल खाता। जिसकी दीवारों पर वो अपनी पेन्टिंग्‍स देख पा रही थी । उस घर के कमरे की दीवारों में अपना म्‍यूजि़क सुन पा रही थी ।

घर मंहगा था । नहीं ख़रीद पाई वो । और वो कह नहीं पाया कि हम दोनों की सैलरी से हो जाएगा ।

No comments:

Post a Comment