मैं भी किसी की कविता हूँ
मुझको पढ़ा करे कोई
मिट्टी की अधूरी मूरत हूँ
मुझको गढ़ा करे कोई
बचपन बीते दिन हुए
फिर से बड़ा करे कोई
बाद में मान जाने को
मुझसे लड़ा करे कोई
गिर के संभलना सीख लिया
कांटों पर चलना सीख लिया
घुटनों से मिट्टी पोंछ के अब
मुझको खड़ा करे कोई
मुझको पढ़ा करे कोई
मिट्टी की अधूरी मूरत हूँ
मुझको गढ़ा करे कोई
बचपन बीते दिन हुए
फिर से बड़ा करे कोई
बाद में मान जाने को
मुझसे लड़ा करे कोई
गिर के संभलना सीख लिया
कांटों पर चलना सीख लिया
घुटनों से मिट्टी पोंछ के अब
मुझको खड़ा करे कोई
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