Saturday 12 November 2011

जो हम पे है गुज़री


करीब साढ़े तीन सौ नंबरों की मेरी ज़िंदगी
मेरे वाकिफ, मेरे दोस्त, मेरा काम, मेरे इश्क़
कुछ पुरानी चिंगारियाँ, थोड़ी ठंडी पड़ चुकी राख़
कुछ तस्वीरें, कुछ नज़्में, कुछ ग़ज़लें
मेरे मनसूबे, मेरी नाकामियाँ, मेरी कोशिशें
सब खो गया है, मेरा फोन चोरी हो गया है

वो बेवजह के मेसेज, वो बेमतलब की बातें
वो मिस्सड कॉल की दलीलें, वो इंतज़ार की रातें
वो टॉक टाइम खत्म हो जाने का बहाना
वो खान मार्किट में गुज़री शाम का ज़माना
वो जो जागा था अरमान मेरे दिल में पुराना
अब वो भी सो गया है, मेरा फोन चोरी हो गया है

कुछ नंबर फालतू थे, कुछ ज़रूरी थे, कुछ ऐसे ही
कुछ ज़बरदस्ती दिये गए, कुछ ज़बरदस्ती लिए गए,  
और एक खास नंबर था, खूबसूरत पहाड़ी झरने सा
बड़ी मुद्दत से बड़ी शिद्दत से, जिस पर इरादा था कॉल करने का,
वो भी सोचती होगी सब मर्द एक से होते हैं इस जमाने में
मेरा स्टैंडर्ड लो हो गया है, मेरा फोन चोरी हो गया है  

मेरी बेटी की तस्वीर थी एक पुरानी उसमें
नज़र आती थी मेरी गुड़िया की नादानी उसमें
जब तक थी वो तस्वीर मेरे फोन में महफ़ूज
मेरी उम्र नहीं बढ़ती थी, मैं कब से जवां था
नहीं रही वो तस्वीर तो अचानक कद मेरी बेटी का
बड़ा हो गया है, मेरा फोन चोरी हो गया है ।