Friday 24 May 2013

कोई

मैं भी किसी की कविता हूँ 
मुझको पढ़ा करे कोई 

मिट्टी की अधूरी मूरत हूँ 
मुझको गढ़ा करे कोई 

बचपन बीते दिन हुए
फिर से बड़ा करे कोई

बाद में मान जाने को
मुझसे लड़ा करे कोई

गिर के संभलना सीख लिया
कांटों पर चलना सीख लिया
घुटनों से मिट्टी पोंछ के अब
मुझको खड़ा करे कोई

Wednesday 1 May 2013

नेलपालिश


पांव के नाखूनों पर 
आधी लगी आधी छूटी नेलपालिश
बयां करती है अधूरी ख्‍वाहिशों की कहानी 

हां मुझे भी शौंक है सजने संवरने का
मुझे भी अच्‍छा लगता है 
कंधे से फोन को कान पर दबाए हुए बतियाना
पांव के नाखूनों पर नेलपालिश लगाना

नेलपालिश को भी गुनाह ठहरातीं
घूरती निगाहें
मां की सख्‍त नज़रें
पिता के माथे की लकीरें
खीज भर देती हैं मन में और
ताज़ा लगी नेलपालिश धीरे धीरे
बन जाती है
आधी लगी आधी छूटी नेल पालिश

पर्स में हमेशा मनपसंद रंग की नेलपालिश रखे
आधी छूटी नेलपालिश वाले पांव
ऑफिस के रास्‍तों पर तेज़ी से चलते हैं
घायल योद्धा की तरह शाम को एक बार सोने से पहले
अपने टूटे हुए नाखूनों का जायज़ा लेते हुए
पर्स में रखी मनपसंद रंग की नेलपालिश को याद कर
बेसुध होकर सो जाते हैं

कोई नहीं है जो उनसे कहे
अच्‍छी नहीं लगती
ये आधी लगी आधी छूटी नेलपालिश
आओ मैं लगा दूँ