Monday 1 October 2012

गज़लों से बिछड़े हुए शेर

YuN bhi maiN jee hi raha tha kisi umMeed ke bagair
tumhare ishq ne kuch mushkileN badha deeN meri
Apni tanhayi se kuch shiqwa nahiN tha mujhko
Ab magar achchi nahiN lagti ye tanhayi teri

यूँ भी मैं जी ही रहा था किसी उम्‍मीद के बग़ैर
तुम्‍हारे इश्‍क ने कुछ मुश्किलें बढ़ा दीं मेरी
अपनी तन्‍हाई से कुछ शिकवा नहीं था मुझको
अब मगर अच्‍छी नहीं लगती ये तन्‍हाई तेरी

Tuesday 3 July 2012

मैं पुजारी पूजता पाषाण प्रतिमा मूक हूँ, 
तुम ना बोलोगी तो क्या मैं प्यार करना छोड़ दूँ ?
प्रेम मेरा प्राण देगा फूँक इस निष्प्राण में, 
सच है ये विश्वास तो बेकार डरना छोड़ दूँ ?

तुम ना बोलोगी तो क्या मैं प्यार करना छोड़ दूँ ?

चाहिए थीं तुमको न जो ये शिलाएँ, ये शिखर 
ले ही आता मैं भी गंगा भागीरथ प्रयास कर 
तुमको तो दिखता नहीं मेरा परिश्रम ही मगर 
तुम कहो तो विश्व पर अधिकार करना छोड़ दूँ ?

तुम ना बोलोगी तो क्या मैं प्यार करना छोड़ दूँ ?

मैंने ही सोचा है तुमको तुम मेरी हो कल्पना
बिन तुम्हारे है अधूरी फिर भी मेरी अर्चना
पत्थरों के देव होते हैं नहीं कारण बिना
तुम हो पत्थर तो मैं क्या शृंगार करना छोड़ दूँ ?

तुम ना बोलोगी तो क्या मैं प्यार करना छोड़ दूँ ?

Saturday 30 June 2012

चलो ज़िद छोड़ देते हैं

चलो ज़िद छोड़ देते हैं
तुम रस्‍ते चलो अपने
हवाओं की दिशा लेकर
मुनासिब है के हम इन
आंधियों को मोड़ देते हैं
चलो ज़िद छोड़ देते हैं

ना अब ये तुमसे सुलझेंगी
ना अब ये हमसे मानेंगी
ये गांठें हमने डाली हैं
ये धागे हमसे उलझे हैं
बस इक इक सिरा खेंचो
ओ जितना हो सके कस के
यूँ झटके से ये बस धागा
चटक कर तोड़ देते हैं
चलो ज़िद छोड़ देते हैं

बस अब ये आखरी है हल
नहीं मुमकिन है अब लड़ना
ये पत्‍थर के हैं जो रस्‍ते
नहीं जाते कहीं भी तो
उम्‍मीदों के पहाड़ों पर
नहीं है हमको अब चढ़ना
ख़ज़ाने बाँट लें फिर अब
मिटा दें हर सुबूत इसका
ये गुल्‍लक बस है मिट्टी की
इसे अब फोड़ देते हैं

चलो ज़िद छोड़ देते हैं

Sunday 6 May 2012

लड़की का बाप


एक हाथ भर का तुम्‍हारा वजूद
अपने हाथों से टटोल कर
मेरे सीने में अपनी मां की गरमी तलाशता था
जिसे वहां ना पाकर तुम चीख चीख कर रोती थीं
और मुझे अपनी मर्दानगी पर शर्मिंदा करती थीं

फिर तुम हाथ भर से गज़ भर की हो गईं
और तुमने स्‍कूल की वैन को देखकर
मेरे गिरेबान को और ज़ोर से पकड़ लिया
लानत है ऐसी पढ़ाई पर
मैंने मन में सोचा
पर फिर सख्‍त हाथ से खुद ही
अपना गिरेबान छुड़ा कर
तुम्‍हें रोते हुए स्‍कूल भेजा
मैं अभी तक अपनी उस लाचारी से उबर नहीं पाया हूँ

पापा थक जाओगे थोड़ी देर आराम कर लो
जैसे किसी ने थप्‍पड़ मार कर नींद से जगा दिया हो
अब तुम इतनी बड़ी हो गई हो कि मैं
अब तुम्‍हें स्‍कूल के लिए तैयार नहीं कर सकता
बस संडे को तुम्‍हारे सर में तेल लगा सकता हूँ

आज फिर शर्मिंदा हूँ अपने मर्द होने पर
बेटी का बाप होना
कितना शर्मिंदगी भरा है

Tuesday 17 January 2012

अब तब तक

अब तब तक नहीं लिखुंगा कुछ भी 
जब तक
पूरे ज़ोर से दबाए हुये सीने का दर्द
पहाड़ी चश्मे सा फूट कर
भिगो नहीं देता कागज को
जब तक
कलम आकर कलाई पकड़ कर
नहीं कह देती के अब मान भी जाओ
क्या करते हो कुछ तो लिखो  
जब तक
कोई नज़्म मेरे कान में फुसफुसा कर
न कह दे के मैं यहीं हूँ
बस एक लंबी सांस भर कर छोड़ दो
और मैं बिखर जाऊँगी जहां कहोगे 

अब तब तक नहीं लिखुंगा कुछ भी
जब तक
बर्दाश्त की हद खत्म नहीं हो जाए
और हवासों पे इख्तियार न रह जाए
और मैं अपनी ही चुप से तंग आकर
बेबस होकर चीख न पड़ूँ
अब तब तक नहीं लिखुंगा नहीं लिखुंगा कुछ भी

Monday 9 January 2012

नल (The Tap)



This is a poem that deals with the romance of a very common man who forms a relationship with his own surroundings in the absence of any other kind of romance in his life. Which in turn actually reflects his real life romantic endeavors.

 मैं अपनी रोज़ की लड़ाई लड़ने
उठ कर जब तुम्हारे पास आता था
तुम पहले से ही सुबक रहे होते थे
फिर मेरे आते ही पानी बहने लगता था
और मेरे थपकियाँ देकर तुम्हें चुप कराने पर
तुम और ज़ोर से बहने लगते थे

मैं कई बार गुस्से में

तुम पर हाथ भी उठा देता था
पर उससे पानी रुकता नहीं था
तुम मेरे सब्र का इम्तिहान लेते रहते
और फिर मैं खुद को संभाल कर
एक खास अंदाज़ में तुम्हें
थोड़ा सहला कर घुमाता
तो तुम फौरन चुप हो जाते
मैं अपने इस हुनर पर
मन ही मन इतराया करता
फिर शाम को वही आलम
तंग आ गया था मैं तुमसे


और एक दिन कारीगर आकर

सब ठीक कर गया
मैं सुबह उठा तो सब भूल चुका था
तुम्हारे पास गया तुम खामोश थे
मैंने तुम्हें खोला
पानी बहने लगा
न कोई आवाज़ न कोई अंदाज़
बस मुसलसल पानी की मोटी धार
फिर हल्के से घुमाया
तुम खामोश हो गए
हमारे बीच एक लंबी उदास चुप थी
तुम मुझे जैसे कह रहे थे
अब खुश ?
मैंने कहा हाँ
मुझे अब मेरे हुनर की ज़रूरत न थी
तुम्हें अब मेरी तवज्जो नहीं चाहिए थी
आज तुम बहुत याद आ रही हो
काश के सब ठीक ना हुआ होता