Monday 9 January 2012

नल (The Tap)



This is a poem that deals with the romance of a very common man who forms a relationship with his own surroundings in the absence of any other kind of romance in his life. Which in turn actually reflects his real life romantic endeavors.

 मैं अपनी रोज़ की लड़ाई लड़ने
उठ कर जब तुम्हारे पास आता था
तुम पहले से ही सुबक रहे होते थे
फिर मेरे आते ही पानी बहने लगता था
और मेरे थपकियाँ देकर तुम्हें चुप कराने पर
तुम और ज़ोर से बहने लगते थे

मैं कई बार गुस्से में

तुम पर हाथ भी उठा देता था
पर उससे पानी रुकता नहीं था
तुम मेरे सब्र का इम्तिहान लेते रहते
और फिर मैं खुद को संभाल कर
एक खास अंदाज़ में तुम्हें
थोड़ा सहला कर घुमाता
तो तुम फौरन चुप हो जाते
मैं अपने इस हुनर पर
मन ही मन इतराया करता
फिर शाम को वही आलम
तंग आ गया था मैं तुमसे


और एक दिन कारीगर आकर

सब ठीक कर गया
मैं सुबह उठा तो सब भूल चुका था
तुम्हारे पास गया तुम खामोश थे
मैंने तुम्हें खोला
पानी बहने लगा
न कोई आवाज़ न कोई अंदाज़
बस मुसलसल पानी की मोटी धार
फिर हल्के से घुमाया
तुम खामोश हो गए
हमारे बीच एक लंबी उदास चुप थी
तुम मुझे जैसे कह रहे थे
अब खुश ?
मैंने कहा हाँ
मुझे अब मेरे हुनर की ज़रूरत न थी
तुम्हें अब मेरी तवज्जो नहीं चाहिए थी
आज तुम बहुत याद आ रही हो
काश के सब ठीक ना हुआ होता

1 comment:

  1. A poem with deep meanings,touched my heart,and in the last lines "nal "turned [which is masculine into faminine.]


    Aaaj tumbahut yaad aa rahee ho
    Any how poem gives theglimpse of a POET in you .!!God bless Maheep

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