Friday 24 May 2013

कोई

मैं भी किसी की कविता हूँ 
मुझको पढ़ा करे कोई 

मिट्टी की अधूरी मूरत हूँ 
मुझको गढ़ा करे कोई 

बचपन बीते दिन हुए
फिर से बड़ा करे कोई

बाद में मान जाने को
मुझसे लड़ा करे कोई

गिर के संभलना सीख लिया
कांटों पर चलना सीख लिया
घुटनों से मिट्टी पोंछ के अब
मुझको खड़ा करे कोई

No comments:

Post a Comment