Monday 2 March 2015

पंजाबी लप्रेक - पिंडलियां

ओह सॉरी । उस कुड़ी दी अवाज़ ने जिवें मैनूँ सुत्‍तेयां तों उठा दित्‍ता होवे । हालांकि मैं नीन्‍दर विच्‍च नहीं सी। बस नाटक दे पातरां च जि़न्‍दगी दी झलक लबदे लबदे ख्‍यालां च गवाच गया सी ।

की ? किसी गंवार वांगूं मैं वट्टा जेहा मारेया सी । मैनूँ इस गल्‍ल दा बिलकुल एहसास नहीं सी के ओस कुड़ी दा पैर मेरे पैर नाल खै गया सी ते इसे लई उसने मैनूँ सॉरी केहा सी ।

कुज्‍ज नहीं । ओसने अपणी शर्मिंदगी लुकौंदे होए केहा। शर्मिंदगी इस गल्‍ल दी नहीं के पैर नाल पैर अबड़वाहे ही खै गया बल्‍के इस गल्‍ल दी शर्मिंदगी के ओसदी सॉरी वी मुज्‍ज गंवार ते ज़ाया हो गई। 

फेर इक्‍क सुपणे वांग पैरां दा इक दूजे नाल खै जाना मैनूँ याद आया ते नाल ही ऐ के कुड़ी ने शायद माफी वजों सॉरी केहा सी । 

कोई गल्‍ल नहीं जी । इट्स ओ के । मैं अपणे उजड्डपणे नूँ अंग्रेज़ी दा मुलम्‍मा चढ़ा के खूबसूरत बणौण दी कोशिश करदेयां केहा ।
 
हुण वट्टा मारण दी वारी ओदी सी

तुसी मैनूँ कुज्‍ज कह रहे ओ ? 

मेतों कोई जवाब नहीं देण होया

नाटक मध्‍यांतर दे नेड़े सी । इक्‍क सत्‍तर ते ज़ोर दा हासा पेया ते दर्शकां दी ताडि़यॉं नाल फेड आउट हो गया। हाउस लाईट्स ऑन हो गईयॉं ते बैकस्‍टेज तों इक आवाज़ ने अनाउंस कीता के दस मिनट दा मध्‍यांतर है ।

मैं अपणे कोने दी सीट दा फायदा चुकदे होए फौरन कॉफी दे काउंटर ते पहुँच गया ।

एक कॉफी बिना चीनी । 

मशीन वाली है अंकल । पहले से चीनी मिक्‍स है इसमें । दूँ ? 
मैं हले उसदे मैनूँ अंकल बुलौण ते फिक्‍की कॉफी ना होण दी दूणी खिज्‍ज नूँ पीण दी कोशिश कर ही रेहा सी के

एक कॉफी और एक चिप्‍स का पैकेट

मैं झट्ट आवाज़ पछाण गेया । ज़हन विच्‍च उसी अवाज़ विच्‍च सॉरी सॉरी रिपीट हो रेहा सी ।

मैं काउंटर वाले मुंडे नूँ केहा

मीठी ही दे दो फिर

उसनूँ छेती छेती पंदरां रूपए फडा के मैं उथों हट जाणा चाहुँदा सी के मुंडे ने केहा

पॉंच रूपए और अंकल बीस की हो गई है । आप बहुत दिनों बाद आए हो ना ।
हुण मैं उसनूँ पछाणेया । ऐ कैन्‍टीन चलौण वाले लाले दा पुत्‍तर सी जेड़ा दसवीं कर रेहा सी ।
मैं पर्स दी पॉकेट चों पन्‍ज दा सिक्‍का कठेया ते उसदे वल्‍ल वधौंदे होए पुच्‍छेया

पापा ठीक हैं ? 
हांजी अंकल ।

ते मैं कॉफी दे झग्‍ग नूँ फूँक मार के बठांदेयॉं टेबल कोल जा के खड़ गेया। ते हर वार दी तरां जल्‍दी इक्‍क घुट्ट भर के मूँह साड़ लेया ।

लूट मचा रखी है । बाहर पंद्रह रूपए की मिलती है । तुम्‍हें पता है कि इंटरवल में कोई बाहर तो जाएगा नहीं।

पैसे पैसे ते बहस करदियां औरतां मैनूँ कदे वी चंगियां नहीं लगदियां सन । पर ओस औरत मतलब कुड़ी दे मुंह तों ऐ गल्‍ल पता नहीं क्‍यों बुरी नहीं सी लग रही ।

मैं अपणी मर्दाना रडार दी वरतों करदे होए ओस कुड़ी दी सूती साड़ी, उसदे हैन्‍डीक्राफ्ट वाले झोले अते लम्‍मीं गुत्‍त नूँ वेख के ओस बारे इक्‍क धारणा बणा चुक्‍का सी ।

इंटरवल खतम हो चुक्‍का सी । घंटी वज्‍ज गई सी । सड़े होए मँह नाल कॉफी नहीं पीती जाणी सी । पर वीह रूपए वेस्‍ट होण दे एहसास करके ज़ोर ज़ोर दी तिन्‍न चार फूकां मार के दो वड्डियां घुट्टां भरियां ते अपणी सीट ते बै गया ।

एक्‍सक्‍यूज़ मी । मुड़ ओही अवाज़ ।

मैं अपणे गोडे समेट के टेडा जेहा हो के राह बणाया । उसने अपणी साड़ी सांबदेयां इक्‍क कदम अग्‍गे वधाया । साड़ी दी तहां दे बावजूद ओसदी पिंडली मेरे गोडे नाल खै के लंघी ते मैं थोड़ा होर टेडा हो गया । फेर दूजी पिंडली ट्रेन दे डब्‍बे वांग उसी तरां मेरे गोडे नूँ खै के लंघी । फेर ओही सॉरी फेर ओही इट्स ओके जी ।

हाउस लाईट्स ऑफ हो गईयां । ड्रामा फेर शुरू होया । ड्रामे दी कहाणी हुण सीरियस हो गई सी । लीड एक्‍ट्रेस दे परभावशाली अभिनय ने कैरैक्‍टर विच्‍च जान पा दित्‍तीसी । हॉल विच्‍च सन्‍नाटा सी । पर मेरे दिमाग विच्‍च ट्रेन दे डब्‍बे लंघ रहे सी । इक्‍क डब्‍बा फेर सॉरी दूजा डब्‍बा फेर सॉरी ।

अखीरले डायलॉग ने ऑडियंस नूँ इक्‍क आह भरण ते मजबूर कर ता । वाकई काफी चंगी एक्टिंग कीती सी कविता शर्मा ने । होली होली म्‍यूजि़क दे नाल स्‍टेज ते हनेरा हो गया ते ताडि़यां दी अवाज़ नाल लाईट्स ऑन हो गईयां । मेरे सज्‍जे पासे पिंडलियां ने खड़े हो के ताडि़यां मारियां । अभिषेक जो के नाटक दा डायरेक्‍टर सी इक्‍क इक्‍क करके एक्‍टर्स नूँ इन्‍ट्रोड्यूस कर रेहा सी । लास्‍ट विच्‍च उसने कविता नूँ इन्‍ट्रोड्यूस कीता ते हॉल ताडि़यां नाल गूँज गया । 

कन्‍नां विच्‍च अभिषेक दी अवाज़ पई । ते हुण ऐस ड्रामें दे राइटर जिनां नूँ किसे परिचय दी लोड़ नहीं श्रीमान..... मैं अपणा नाम सुण के होली होली खड़ा होया ते स्‍टेज वल्‍ल तुरन लगा । पिंडलियां वाली साईड तों इक्‍क पल लई ताडि़यां दी अवाज़ मन्‍द पै गई सी । पर फिर तेज़ हो गई थी । स्‍टेज दी लाईट्स मूँ ते पै रहियां सन । कुज्‍ज नज़र नहीं सी आ रेहा । पर मैनूँ इक्‍क ख़ास ताड़ीदी अवाज़ वखरी सुणाई दे रही सी । मैं उस्‍स अवाज़ वल्‍ल मूँह करके ख़ासतौर ते अपणा सिर झुकाया ।
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"डेड़ साल हो गया इस्‍स दुरघटणा नूँ"  मेरे इस्‍स खचरे मज़ाक नूँ सुण के ओसने मेरे मोडे ते इक्‍क मुक्‍की मारी । अच्‍छा ? दुर्घटना ? फेर आपे ही हस्‍स पई । फेर मेरे कोल ही पेड़ दे दुआले बणे थड़े ते बैठ गई । फेर अवाज़ मार के बोली ''रमेश भैया एक फीकी एक मीठी ।''

साहडे गोडे इक्‍क दूजे नाल खै रहे सन । उसने इक्‍क हत्‍थ नाल सिर तों हटा के अपणे चश्‍मे नूँ अक्‍खां ते चढ़ाया ते किताब खोल के पड़न लगी । थोड़ी देर बाद इक्‍क पन्‍ना पलट के थोड़ा मुस्‍कराई ते उंगली नाल किताब बंद होण तों रोक के उसी हत्‍थ नाल मेरे मोडे ते किताब मार मे हासा रोकदेयां बोली "पिंडलियां ? अच्‍छा? और कोई नाम नहीं मिला कहानी का ?"

"
ये कहानी का नहीं तुम्‍हारा नाम है। " मैं उस्‍स वल्‍ल अर्थ भरी नज़र नाल वेख के केहा । उसने अपणी मुस्‍कुराहट नूँ दबा के केहा "बेशरम"


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