Tuesday 3 July 2012

मैं पुजारी पूजता पाषाण प्रतिमा मूक हूँ, 
तुम ना बोलोगी तो क्या मैं प्यार करना छोड़ दूँ ?
प्रेम मेरा प्राण देगा फूँक इस निष्प्राण में, 
सच है ये विश्वास तो बेकार डरना छोड़ दूँ ?

तुम ना बोलोगी तो क्या मैं प्यार करना छोड़ दूँ ?

चाहिए थीं तुमको न जो ये शिलाएँ, ये शिखर 
ले ही आता मैं भी गंगा भागीरथ प्रयास कर 
तुमको तो दिखता नहीं मेरा परिश्रम ही मगर 
तुम कहो तो विश्व पर अधिकार करना छोड़ दूँ ?

तुम ना बोलोगी तो क्या मैं प्यार करना छोड़ दूँ ?

मैंने ही सोचा है तुमको तुम मेरी हो कल्पना
बिन तुम्हारे है अधूरी फिर भी मेरी अर्चना
पत्थरों के देव होते हैं नहीं कारण बिना
तुम हो पत्थर तो मैं क्या शृंगार करना छोड़ दूँ ?

तुम ना बोलोगी तो क्या मैं प्यार करना छोड़ दूँ ?

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